भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"पूनम की चाँदनी में बगिया नहा रही है / मृदुला झा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
00:09, 30 अप्रैल 2019 का अवतरण
बेला की भीनी खुशबू मन को लुभा रही है।
मौसम बहार का है छेड़ो न कोई नगमा,
तेरी नजर फरेबी सब कुछ बता रही है।
तीरे-नज़र से तुमने हमको किया है घायल,
हर पल मगर तुम्हारी ही याद आ रही है।
है झील से भी गहरी तेरी ये नीली आँखें,
मदहोश करके जानम क्यों दूर जा रही है।
जीना हुआ है मुश्किल तेरे बगैर हमदम,
मेरी उदास बिंदिया तुझको बुला रही है।