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"सरे आम महफिल में आना तुम्हारा / मृदुला झा" के अवतरणों में अंतर

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21:32, 4 मई 2019 के समय का अवतरण

दिखाकर झलक लौट जाना तुम्हारा।

लगे थे जहाँ में हसीनों के मेले,
रहा साथ मेरे फसाना तुम्हारा।

तुम्हारी अदाओं का कायल था मैं भी,
सितम ढा गया रूठ जाना तुम्हारा।

शराफत नहीं तो भला और क्या है,
रुठकर दो पल मान जाना तुम्हारा।

जिसे दोस्त समझा है तुमने हमेशा,
बना क्यों वो दुश्मन ज़माना तुम्हारा।