भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ज़िन्दगी ने खुद सँवारा है मुझे / मृदुला झा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मृदुला झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) छो (Rahul Shivay ने ज़िन्दगी ने खुद सँवारा है मुझेए / मृदुला झा पृष्ठ [[ज़िन्दगी ने खुद सँवारा है मुझे / मृदुल...) |
(कोई अंतर नहीं)
|
21:36, 4 मई 2019 के समय का अवतरण
हर बशर बेहद ही प्यारा है मुझे।
छंद, लय, अनुप्रास बन-बन कर कभी,
और लोरी बन दुलारा है मुझे।
बुजदिलों की भाँति रोता था कभी,
राहे-हिम्मत ने उबारा है मुझे।
जा फँसा था ज़ालिमों की फांस में,
मुक्ति का दे मंत्र तारा है मुझे।
भूल पाऊँगी नहीं इस स्नेह को,
थपकियाँ दे खुद दुलारा है मुझे।