भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सरफ़रोशी की तमन्ना / बिस्मिल अज़ीमाबादी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
 
(एक अन्य सदस्य द्वारा किये गये बीच के 2 अवतरण नहीं दर्शाए गए)
पंक्ति 10: पंक्ति 10:
 
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है
 
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है
  
करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
+
एक से करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
 
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
 
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है
  
शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
+
शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
 
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
 
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है
  
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
 
 
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
 
वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
 +
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
  
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है
 
 
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
 
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
 
 
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
 
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
 
 
</poem>
 
</poem>

15:47, 6 मई 2019 के समय का अवतरण

अक्सर लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल जी की रचना बताते हैं लेकिन वास्तव में ये अज़ीमाबाद (अब पटना) के मशहूर शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी की हैं और रामप्रसाद बिस्मिल ने उनका शे'र फांसी के फंदे पर झूलने के समय कहा था। चूँकि अधिकाँश लोग इसे राम प्रसाद बिस्मिल की रचना मानते है इसलिए इस रचना को बिस्मिल के पन्ने पर भी रखा गया है। -- कविता कोश टीम

सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है

एक से करता नहीं क्यूँ दूसरा कुछ बातचीत,
देखता हूँ मैं जिसे वो चुप तेरी महफ़िल में है

ऐ शहीद-ए-मुल्क-ओ-मिल्लत मैं तेरे ऊपर निसार,
अब तेरी हिम्मत का चरचा गैर की महफ़िल में है

वक्त आने दे बता देंगे तुझे ऐ आसमान,
हम अभी से क्या बतायें क्या हमारे दिल में है

खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है