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डाले न हथियार
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हरी हो मुसकाए
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जीवट घास।
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आँधी–तूफान
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ज़ब्त न कर पाएँ
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चर रहा है
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पल–पल मुझे क्यों
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अंजाना डर।
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तुम जो मिले
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जगी हैं बेचैनियाँ
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कहो क्या करें!
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मचली चाह
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कल्पना में पगी है
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प्यार की राह।
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भीग गई मैं
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सावन की झड़ी-सी
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नेह तुम्हारा।
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बातें तुम्हारी
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घोल गईं  साँसों में
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ललिता छंद।
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जलाए मन
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सुधियों के अंगारे
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सिराए कौन।
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12
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अपनापन
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तनिक न खुशबू
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निरा छलावा।
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07:33, 17 मई 2019 का अवतरण



1
पत्तियाँ स्पंदी
चाँदनी का कम्पन
हरता मन।
2
अमर होती
मर के घास बुने
चिड़िया नीड़।
3
साहसी घास
डाले न हथियार
जमाए जड़ें।
4
कितना मरे
हरी हो मुसकाए
जीवट घास।
5
आँधी–तूफान
ज़ब्त न कर पाएँ
दूब– मुस्कान।
6
चर रहा है
पल–पल मुझे क्यों
अंजाना डर।
7
तुम जो मिले
जगी हैं बेचैनियाँ
कहो क्या करें!
8
मचली चाह
कल्पना में पगी है
प्यार की राह।
8
भीग गई मैं
सावन की झड़ी-सी
नेह तुम्हारा।
10
बातें तुम्हारी
घोल गईं साँसों में
ललिता छंद।
11
जलाए मन
सुधियों के अंगारे
सिराए कौन।
12
अपनापन
तनिक न खुशबू
निरा छलावा।
-0-