"आओ बुनेंगे / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर
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| − | + | दीपक की लौ | |
| + | गाल पर ढुलका | ||
| + | जैसे हो आँसू । | ||
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| + | बसी परदेस में | ||
| + | बेटी न आई । | ||
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| + | भाई जोहता | ||
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| + | आई बहना । | ||
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| + | नींद थी आई | ||
| + | सपने में सिसका | ||
| + | पड़ी सुनाई। | ||
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| + | सिसके पिता | ||
| + | सबसे छुपकर | ||
| + | अँधियारे में। | ||
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| + | चलते गए | ||
| + | लुटे-पिटे -से पिता | ||
| + | गलियारे में । | ||
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| + | पता ये चला - | ||
| + | बेटी हुई व्याकुल | ||
| + | हिरनी जैसी । | ||
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| + | दीपक जले | ||
| + | नभ उतरा धरा | ||
| + | मिलता गले । | ||
| + | 148 | ||
| + | अँधेरा डरा | ||
| + | देखकर उजाला | ||
| + | छुपता फिरा । | ||
| + | 149 | ||
| + | रोशनी बसी- | ||
| + | मन नन्हें शिशु की | ||
| + | बिखरी हँसी | ||
| + | 150 | ||
| + | दिया जो जला | ||
| + | था डरा अँधियारा | ||
| + | उजाला खिला | ||
| + | 151 | ||
| + | मन का तम | ||
| + | मिटाते रहे तेरे | ||
| + | मन के दिए । | ||
| + | 152 | ||
| + | दीप जलाओ | ||
| + | जो भटके पथ में | ||
| + | राह दिखाओ । | ||
| + | 153 | ||
| + | प्रेम -दीप से | ||
| + | मन में हैं उजाले | ||
| + | तुम्हीं ने बाले । | ||
| + | 154 | ||
| + | कब था डरा ? | ||
| + | नन्हा -सा दीप यह | ||
| + | नेह से भरा । | ||
| + | 155 | ||
| + | आओ बुनेंगे | ||
| + | उजालों की चादर | ||
| + | भावों से भर । | ||
| + | 156 | ||
| + | दुख-पाहुन | ||
| + | न मन में टिकाओ | ||
| + | दीप जलाओ । | ||
| + | 157 | ||
| + | रौशन घर | ||
| + | बन गया मन्दिर | ||
| + | पूजा के स्वर । | ||
| + | 158 | ||
| + | उस वर्षा में | ||
| + | खूब तैरता है ये | ||
| + | आँगन सारा | ||
| + | 159 | ||
| + | रिश्तो के नाम | ||
| + | गिरवी न रखेंगे | ||
| + | सुबह -शाम । | ||
| + | 16 | ||
| + | मिलेगा प्रेम | ||
| + | तो निभाएँगे हम | ||
| + | सारे ही नेम । | ||
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04:37, 19 मई 2019 के समय का अवतरण
140
दीपक की लौ
गाल पर ढुलका
जैसे हो आँसू ।
141
दबी रुलाई
बसी परदेस में
बेटी न आई ।
142
भाई जोहता
बाट एकटक , न
आई बहना ।
143
नींद थी आई
सपने में सिसका
पड़ी सुनाई।
144
सिसके पिता
सबसे छुपकर
अँधियारे में।
145
चलते गए
लुटे-पिटे -से पिता
गलियारे में ।
146
पता ये चला -
बेटी हुई व्याकुल
हिरनी जैसी ।
147
दीपक जले
नभ उतरा धरा
मिलता गले ।
148
अँधेरा डरा
देखकर उजाला
छुपता फिरा ।
149
रोशनी बसी-
मन नन्हें शिशु की
बिखरी हँसी
150
दिया जो जला
था डरा अँधियारा
उजाला खिला
151
मन का तम
मिटाते रहे तेरे
मन के दिए ।
152
दीप जलाओ
जो भटके पथ में
राह दिखाओ ।
153
प्रेम -दीप से
मन में हैं उजाले
तुम्हीं ने बाले ।
154
कब था डरा ?
नन्हा -सा दीप यह
नेह से भरा ।
155
आओ बुनेंगे
उजालों की चादर
भावों से भर ।
156
दुख-पाहुन
न मन में टिकाओ
दीप जलाओ ।
157
रौशन घर
बन गया मन्दिर
पूजा के स्वर ।
158
उस वर्षा में
खूब तैरता है ये
आँगन सारा
159
रिश्तो के नाम
गिरवी न रखेंगे
सुबह -शाम ।
16
मिलेगा प्रेम
तो निभाएँगे हम
सारे ही नेम ।

