भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"ख़्वाब सच के रुबरु करते रहे/ राज़िक़ अंसारी" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राज़िक़ अंसारी }} {{KKCatGhazal}} <poem>ख़्वाब...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

07:20, 15 जून 2019 के समय का अवतरण

ख़्वाब सच के रुबरु करते रहे
ज़ख़्म आंखों के रफू करते रहे

काटना था रात का तन्हा सफ़र
ख़ुद से हम ख़ुद गुफ़्तगू करते रहे

खोल कर लब दोस्तों के सामने
दर्द को बे आबरु करते रहे

चाहते थे हम ताअल्लुक़ हो बहाल
आप रिश्तों का लहू करते रहे

रोज़ हम करते रहे इक आरज़ू
रोज़ क़त्ले आरज़ू करते रहे