"पहाड़ी गाँव में / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | कुछ बिखरे हुए कंगन | ||
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+ | बिखरे बाल डूबी साँसें | ||
+ | गहरे दुःख परदे झलमल | ||
+ | आह निकली एक दिल से | ||
+ | और तब थम गई धड़कन | ||
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+ | गाढ़ा पसीना संस्कार मान | ||
+ | सब नशे में घोल आया | ||
+ | शेष- कुछ टूटी शीशियाँ | ||
+ | कुछ बोतलों के ढक्कन | ||
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+ | ताश में सब झोंक आया | ||
+ | पास पत्नी के बचीं अब | ||
+ | कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ | ||
+ | और चन्द टूटे हुए कंगन | ||
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+ | पत्नी झुर्रियाँ ओढ़ बैठी | ||
+ | अपने समय से पहले ही | ||
+ | बच गए बच्चों के पास | ||
+ | टूटे खिलौने , कुछ बर्तन | ||
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+ | बस्ते और कॉपी पेन को | ||
+ | मिला था निश्छल बचपन | ||
+ | बीता ढाबों की टेबल पर | ||
+ | सोते बोरी पर, धोते जूठन | ||
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+ | ऊँची पहाड़ी पर ऊँघता है | ||
+ | ढलते सूरज सा प्रतिदिन | ||
+ | शेष- कुछ टूटी शीशियाँ | ||
+ | कुछ बोतलों के ढक्कन | ||
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02:40, 29 जून 2019 के समय का अवतरण
पहाड़ी गाँव की पगडंडी
और सड़क पर बिखरी
कुछ टूटी हुई शीशियाँ
कुछ बोतलों के ढक्कन
आँखें भरी याद आए
युवा लड़खड़ाते कदम
कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ
कुछ बिखरे हुए कंगन
बिखरे बाल डूबी साँसें
गहरे दुःख परदे झलमल
आह निकली एक दिल से
और तब थम गई धड़कन
गाढ़ा पसीना संस्कार मान
सब नशे में घोल आया
शेष- कुछ टूटी शीशियाँ
कुछ बोतलों के ढक्कन
ताश में सब झोंक आया
पास पत्नी के बचीं अब
कुछ टूटी हुई चूड़ियाँ
और चन्द टूटे हुए कंगन
पत्नी झुर्रियाँ ओढ़ बैठी
अपने समय से पहले ही
बच गए बच्चों के पास
टूटे खिलौने , कुछ बर्तन
बस्ते और कॉपी पेन को
मिला था निश्छल बचपन
बीता ढाबों की टेबल पर
सोते बोरी पर, धोते जूठन
ऊँची पहाड़ी पर ऊँघता है
ढलते सूरज सा प्रतिदिन
शेष- कुछ टूटी शीशियाँ
कुछ बोतलों के ढक्कन