भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"एक बूँद, ओस की / सुनीता शानू" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सुनीता शानू |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
20:50, 9 जुलाई 2019 के समय का अवतरण
वह उतरी
आसमान से
रिम-झिम सावन की
फ़ुहार बनकर
झिलमिलाई आँगन में
असंख्य मोतियों का
हार बनकर
छू लिया होंठों ने
जो एक दिन
महकी उठी
सोंधी बयार बनकर
बरसती रही
मधुबन में मेरे
सावन की पहली
बौछार बनकर।
अहसास प्रेम का
हुआ जब उसे
बह चली आँसुओं की
धार बनकर
पिघलती रही
हृदय मे मेरे
प्रियतम का पहला
प्यार बनकर...