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"खौफ अब आतंक का जड़ से मिटाना चाहिए / सुनील त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर

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पुलिंदे झूठ के हैं ये इन्हें अख़बार मत कह।
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खौफ अब आतंक का जड़ से मिटाना चाहिए.
कलम ग़र बिक चुकी है तो उसे तलवार मत कह।
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नीड से भटके खगों को, फिर बसाना चाहिए.
  
निभाया जा रहा है फ़ोन इंटर्नेट पर जो।
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हादसे हों नित नये, पैमाइशों पर धर्म की।
मशीनी दौर के इस फ़र्ज़ को व्यवहार मत कह।
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खेल ऐसा अब न बच्चो को सिखाना चाहिए.
  
जिसे टी आर पी तगड़ी मिले चलती ख़बर वह।
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अनुसरण तो बुद्ध के, उपदेश का यूँ ठीक है।
किसी भी मीडिया हाउस को ज़िम्मेदार मत कह।
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सूत्र पर चाणक्य के भी, आजमाना चाहिए.
  
उठाते बोझ तेरी परवरिश का उम्र भर जो।
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साधुता से दुर्जनों को, जीतना है नीतिगत।
कमसकम शर्म कर माँ बाप को तो भार मत कह।
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किन्तु फल जैसे को' तैसा भी चखाना चाहिए.
  
रहीमो राम या फिर, नाम का गुरु मीत हो वह।
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राजनैतिक हों भले, मतभेद दल गत लाख पर।
जो' असमत का लुटेरा हो उसे सरदार मत कह।
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राष्ट्र मुद्दों पर सभी को, साथ आना चाहिए.
  
चढ़ावा मत चढ़ा मंदिर किसी दरगाह पर तू।
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युद्ध जब स्वजनों के' सँग हो और पैदा मोह हो।
ज़रूरतमंद को लेकिन कभी इंकार मत कह।
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ध्यान गीता सार पर हमको लगाना चाहिए.
 
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पुराना पेड़ है ग़र फल, नहीं तो छांव देगा।
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बुजुर्गों की तरह कर कद्र, यूं बेकार मत कह।
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22:18, 10 जुलाई 2019 के समय का अवतरण

खौफ अब आतंक का जड़ से मिटाना चाहिए.
नीड से भटके खगों को, फिर बसाना चाहिए.

हादसे हों नित नये, पैमाइशों पर धर्म की।
खेल ऐसा अब न बच्चो को सिखाना चाहिए.

अनुसरण तो बुद्ध के, उपदेश का यूँ ठीक है।
सूत्र पर चाणक्य के भी, आजमाना चाहिए.

साधुता से दुर्जनों को, जीतना है नीतिगत।
किन्तु फल जैसे को' तैसा भी चखाना चाहिए.

राजनैतिक हों भले, मतभेद दल गत लाख पर।
राष्ट्र मुद्दों पर सभी को, साथ आना चाहिए.

युद्ध जब स्वजनों के' सँग हो और पैदा मोह हो।
ध्यान गीता सार पर हमको लगाना चाहिए.