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"स्तब्ध बोध / ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति" के अवतरणों में अंतर

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|रचनाकार=मृदुल कीर्ति
 
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|संग्रह = ईहातीत छन / मृदुल कीर्ति
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|संग्रह = ईहातीत क्षण / मृदुल कीर्ति
 
}}देह के सीमांतों मैं रह कर असीम की खोज  
 
}}देह के सीमांतों मैं रह कर असीम की खोज  
  

19:42, 14 अगस्त 2008 के समय का अवतरण

देह के सीमांतों मैं रह कर असीम की खोज

काल के अभिग्रह में बंद होकर कालातीत की खोज

प्रमत्त, उन्मत्त क्षणों की तन्मय प्रक्रिया में

हम यह भूल जाते हैं,

कि

गहरे से गहरे प्रणय और प्यार के संवेदन भी

एक दिन निदान चुक जाते हैं.


इनकी भी एक सीमा है,

क्योंकि

इनके स्थूल परमाणु

गुरुत्वाकर्षण की सीमा पर ही रुक जाते हैं.

अन्तर केवल इतना है कि

गुरुत्वाकर्षण की सीमा के इस पार

हम परिणाम की इच्छा करते हैं,

और सीमा के उस पार

हम इच्छा का परिणाम जानते हैं.

सच तो यह है कि

ईश्वर की तरह निर्मोही

होकर ही कोई अमोघ प्यार दे सकता है.

स्तब्ध बोध से विश्रब्ध हूँ,

स्तब्ध हूँ,

कि निर्मोही भी कितना मोही हो सकता है.

स्तब्ध बोध

देह के सीमांतों मैं रह कर असीम की खोज

काल के अभिग्रह में बंद होकर कालातीत की खोज

प्रमत्त, उन्मत्त क्षणों की तन्मय प्रक्रिया में

हम यह भूल जाते हैं,

कि

गहरे से गहरे प्रणय और प्यार के संवेदन भी

एक दिन निदान चुक जाते हैं.

इनकी भी एक सीमा है,

क्योंकि

इनके स्थूल परमाणु

गुरुत्वाकर्षण की सीमा पर ही रुक जाते हैं.

अन्तर केवल इतना है कि

गुरुत्वाकर्षण की सीमा के इस पार

हम परिणाम की इच्छा करते हैं,

और सीमा के उस पार

हम इच्छा का परिणाम जानते हैं.

सच तो यह है कि

ईश्वर की तरह निर्मोही

होकर ही कोई अमोघ प्यार दे सकता है.

स्तब्ध बोध से विश्रब्ध हूँ,

स्तब्ध हूँ,

कि निर्मोही भी कितना मोही हो सकता है.