"युग का जुआ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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युग के युवा, | युग के युवा, | ||
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मत देख दाएँ, | मत देख दाएँ, | ||
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और बाएँ, और पीछे, | और बाएँ, और पीछे, | ||
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झाँक मत बग़लें, | झाँक मत बग़लें, | ||
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न अपनी आँख कर नीचे; | न अपनी आँख कर नीचे; | ||
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अगर कुछ देखना है, | अगर कुछ देखना है, | ||
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देख अपने वे | देख अपने वे | ||
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वृषम कंधे | वृषम कंधे | ||
− | + | जिन्हेंध देता निमंत्रण | |
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सामने तेरे पड़ा | सामने तेरे पड़ा | ||
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युग का जुआ, | युग का जुआ, | ||
− | + | युग के युवा! तुझको अगर कुछ देखना है, | |
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देख दुर्गम और गहरी | देख दुर्गम और गहरी | ||
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घाटियाँ | घाटियाँ | ||
− | + | जिनमें करोड़ों संकटकों के | |
− | जिनमें | + | |
− | + | ||
बीच में फँसता, निकलता | बीच में फँसता, निकलता | ||
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यह शकट | यह शकट | ||
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बढ़ता हुआ | बढ़ता हुआ | ||
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पहुँचा यहाँ है। | पहुँचा यहाँ है। | ||
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दोपहर की धूप में | दोपहर की धूप में | ||
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कुछ चमचमाता-सा | कुछ चमचमाता-सा | ||
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दिखाई दे रहा है | दिखाई दे रहा है | ||
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घाटियों में। | घाटियों में। | ||
यह नहीं जल, | यह नहीं जल, | ||
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यह नहीं हिम-खंड शीतल, | यह नहीं हिम-खंड शीतल, | ||
− | |||
यह नहीं है संगमरमर, | यह नहीं है संगमरमर, | ||
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यह न चाँदी, यह न सोना, | यह न चाँदी, यह न सोना, | ||
− | |||
यह न कोई बेशक़ीमत धातु निर्मल। | यह न कोई बेशक़ीमत धातु निर्मल। | ||
− | + | देख इनकी ओर, | |
− | देख | + | |
− | + | ||
माथे को झुका, | माथे को झुका, | ||
− | + | यह कीर्ति उज्व्म ल | |
− | यह कीर्ति | + | पूज्यर तेरे पूर्वजों की |
− | + | ||
− | + | ||
− | + | ||
अस्थियाँ हैं। | अस्थियाँ हैं। | ||
आज भी उनके | आज भी उनके | ||
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पराक्रमपूर्ण कंधों का | पराक्रमपूर्ण कंधों का | ||
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महाभारत | महाभारत | ||
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लिखा युग के जुए पर। | लिखा युग के जुए पर। | ||
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आज भी ये अस्थियाँ | आज भी ये अस्थियाँ | ||
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मुर्दा नहीं हैं; | मुर्दा नहीं हैं; | ||
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बोलती हैं : | बोलती हैं : | ||
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"जो शकट हम | "जो शकट हम | ||
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घाटियों से | घाटियों से | ||
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ठेलकर लाए यहाँ तक, | ठेलकर लाए यहाँ तक, | ||
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अब हमारे वंशजों की | अब हमारे वंशजों की | ||
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आन | आन | ||
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उसको खींच ऊपर को चढ़ाएँ | उसको खींच ऊपर को चढ़ाएँ | ||
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चोटियों तक।" | चोटियों तक।" | ||
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गूँजती तेरी शिराओं में | गूँजती तेरी शिराओं में | ||
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गिरा गंभीर यदि यह, | गिरा गंभीर यदि यह, | ||
− | + | प्रतिध्वीनित होता अगर है | |
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नाद नर इन अस्थियों का | नाद नर इन अस्थियों का | ||
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आज तेरी हड्डियों में, | आज तेरी हड्डियों में, | ||
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तो न डर, | तो न डर, | ||
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युग के युवा, | युग के युवा, | ||
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मत देख दाएँ | मत देख दाएँ | ||
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और बाएँ और पीछे, | और बाएँ और पीछे, | ||
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झाँक मत बग़लें, | झाँक मत बग़लें, | ||
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न अपनी आँख कर नीचे; | न अपनी आँख कर नीचे; | ||
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अगर कुछ देखना है | अगर कुछ देखना है | ||
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देख अपने वे | देख अपने वे | ||
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वृषभ कंधे | वृषभ कंधे | ||
− | + | जिन्हेंध देता चुनौती | |
− | + | ||
− | + | ||
सामने तेरे पड़ा | सामने तेरे पड़ा | ||
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युग का जुआ। | युग का जुआ। | ||
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इसको तमककर तक, | इसको तमककर तक, | ||
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हुमककर ले उठा, | हुमककर ले उठा, | ||
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युग के युवा! | युग के युवा! | ||
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लेकिन ठहर, | लेकिन ठहर, | ||
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यह बहुत लंबा, | यह बहुत लंबा, | ||
− | + | बहुत मेहनत औ' मशक़् क़त | |
− | बहुत मेहनत औ' | + | |
− | + | ||
माँगनेवाला सफ़र है। | माँगनेवाला सफ़र है। | ||
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तै तुझे करना अगर है | तै तुझे करना अगर है | ||
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तो तुझे | तो तुझे | ||
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होगा लगाना | होगा लगाना | ||
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ज़ोर एड़ी और चोटी का बराबर, | ज़ोर एड़ी और चोटी का बराबर, | ||
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औ' बढ़ाना | औ' बढ़ाना | ||
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क़दम, दम से साध सीना, | क़दम, दम से साध सीना, | ||
− | |||
और करना एक | और करना एक | ||
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लोहू से पसीना। | लोहू से पसीना। | ||
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मौन भी रहना पड़ेगा; | मौन भी रहना पड़ेगा; | ||
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बोलने से | बोलने से | ||
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प्राण का बल | प्राण का बल | ||
− | |||
क्षीण होता; | क्षीण होता; | ||
− | + | शब्दण केवल झाग बन | |
− | + | ||
− | + | ||
घुटता रहेगा बंद मुख में। | घुटता रहेगा बंद मुख में। | ||
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फूलती साँसें | फूलती साँसें | ||
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कहाँ पहचानती हैं | कहाँ पहचानती हैं | ||
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फूल-कलियों की सुरभि को | फूल-कलियों की सुरभि को | ||
− | + | लक्ष्यह के ऊपर | |
− | + | ||
− | + | ||
जड़ी आँखें | जड़ी आँखें | ||
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भला, कब देख पातीं | भला, कब देख पातीं | ||
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साज धरती का, | साज धरती का, | ||
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सजीलापन गगन का। | सजीलापन गगन का। | ||
− | + | वत्स! | |
− | + | ||
− | + | ||
आ तेरे गले में | आ तेरे गले में | ||
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एक घंटी बाँध दूँ मैं, | एक घंटी बाँध दूँ मैं, | ||
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जो परिश्रम | जो परिश्रम | ||
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के मधुरतम | के मधुरतम | ||
− | |||
कंठ का संगीत बनाकर | कंठ का संगीत बनाकर | ||
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प्राण-मन पुलकित करे | प्राण-मन पुलकित करे | ||
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तेरा निरंतर, | तेरा निरंतर, | ||
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और जिसकी | और जिसकी | ||
− | + | क्लांत औ' एकांत ध्वनि | |
− | + | ||
− | + | ||
तेरे कठिन संघर्ष की | तेरे कठिन संघर्ष की | ||
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बनकर कहानी | बनकर कहानी | ||
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गूँजती जाए | गूँजती जाए | ||
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पहाड़ी छातियों में। | पहाड़ी छातियों में। | ||
अलविदा, | अलविदा, | ||
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युग के युवा, | युग के युवा, | ||
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अपने गले में डाल तू | अपने गले में डाल तू | ||
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युग का जुआ; | युग का जुआ; | ||
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इसको समझ जयमाल तू; | इसको समझ जयमाल तू; | ||
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कवि की दुआ! | कवि की दुआ! | ||
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10:09, 8 सितम्बर 2019 का अवतरण
युग के युवा,
मत देख दाएँ,
और बाएँ, और पीछे,
झाँक मत बग़लें,
न अपनी आँख कर नीचे;
अगर कुछ देखना है,
देख अपने वे
वृषम कंधे
जिन्हेंध देता निमंत्रण
सामने तेरे पड़ा
युग का जुआ,
युग के युवा! तुझको अगर कुछ देखना है,
देख दुर्गम और गहरी
घाटियाँ
जिनमें करोड़ों संकटकों के
बीच में फँसता, निकलता
यह शकट
बढ़ता हुआ
पहुँचा यहाँ है।
दोपहर की धूप में
कुछ चमचमाता-सा
दिखाई दे रहा है
घाटियों में।
यह नहीं जल,
यह नहीं हिम-खंड शीतल,
यह नहीं है संगमरमर,
यह न चाँदी, यह न सोना,
यह न कोई बेशक़ीमत धातु निर्मल।
देख इनकी ओर,
माथे को झुका,
यह कीर्ति उज्व्म ल
पूज्यर तेरे पूर्वजों की
अस्थियाँ हैं।
आज भी उनके
पराक्रमपूर्ण कंधों का
महाभारत
लिखा युग के जुए पर।
आज भी ये अस्थियाँ
मुर्दा नहीं हैं;
बोलती हैं :
"जो शकट हम
घाटियों से
ठेलकर लाए यहाँ तक,
अब हमारे वंशजों की
आन
उसको खींच ऊपर को चढ़ाएँ
चोटियों तक।"
गूँजती तेरी शिराओं में
गिरा गंभीर यदि यह,
प्रतिध्वीनित होता अगर है
नाद नर इन अस्थियों का
आज तेरी हड्डियों में,
तो न डर,
युग के युवा,
मत देख दाएँ
और बाएँ और पीछे,
झाँक मत बग़लें,
न अपनी आँख कर नीचे;
अगर कुछ देखना है
देख अपने वे
वृषभ कंधे
जिन्हेंध देता चुनौती
सामने तेरे पड़ा
युग का जुआ।
इसको तमककर तक,
हुमककर ले उठा,
युग के युवा!
लेकिन ठहर,
यह बहुत लंबा,
बहुत मेहनत औ' मशक़् क़त
माँगनेवाला सफ़र है।
तै तुझे करना अगर है
तो तुझे
होगा लगाना
ज़ोर एड़ी और चोटी का बराबर,
औ' बढ़ाना
क़दम, दम से साध सीना,
और करना एक
लोहू से पसीना।
मौन भी रहना पड़ेगा;
बोलने से
प्राण का बल
क्षीण होता;
शब्दण केवल झाग बन
घुटता रहेगा बंद मुख में।
फूलती साँसें
कहाँ पहचानती हैं
फूल-कलियों की सुरभि को
लक्ष्यह के ऊपर
जड़ी आँखें
भला, कब देख पातीं
साज धरती का,
सजीलापन गगन का।
वत्स!
आ तेरे गले में
एक घंटी बाँध दूँ मैं,
जो परिश्रम
के मधुरतम
कंठ का संगीत बनाकर
प्राण-मन पुलकित करे
तेरा निरंतर,
और जिसकी
क्लांत औ' एकांत ध्वनि
तेरे कठिन संघर्ष की
बनकर कहानी
गूँजती जाए
पहाड़ी छातियों में।
अलविदा,
युग के युवा,
अपने गले में डाल तू
युग का जुआ;
इसको समझ जयमाल तू;
कवि की दुआ!