भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मेरे देश को क्या हो गया है / हरीश प्रधान" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Lalit Kumar (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=हरीश प्रधान |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
14:25, 11 सितम्बर 2019 के समय का अवतरण
आज मेरे देश को, क्या हो गया है
हर आदमी, दो मुहाँ हो गया है
समस्याएँ, सुरसा का मुँह हो गयी हैं
जीवन अँधेरा कुआँ हो गया है
अहित कर सकूं, तो ही इज़्ज़त करोगे
भला आचरण, तो धुआँ हो गया है
तस्करी, लूट चोरी, व काली कमाई
किया जिसने धन्धा, रहनुमाँ हो गया है
भरी जेब जिसकी, बड़ा आदमी है
ये माहौल ही, बदनुमां हो गया है।