भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हाल पूछ कर आएँ / सीमा अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सीमा अग्रवाल |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KK...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
22:51, 4 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
चलो आज उस ठौर ठिए का
हाल पूछ कर आएँ
जहाँ बैठ माँ अक्सर
सबकी राह तका करती थी
बार बार छज्जे तक आना
बार बार झल्लाना
जैसे जैसे समय बढ़े
देवी-देवता मनाना
निमिष निमिष पर
घबरा कर मन्नतें नई रखती थी
ढाढस, मायूसी, अधीरता
रोष कभी कौतूहल
आँचल से बिखरे होंगे
जाने ऐसे कितने पल
क़दम क़दम पर ममता के
जादू टोने धरती थी
खट्टे-मीठे सम्वादों की
ख़ुशबू से तर होगी
धूप-छांव-बारिश ओढ़े वह
हवा वहीं पर होगी
आँखों ही आँखों से माँ
जिससे सब कुछ कहती थी