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मुझे भरोसा है / तुषार धवल

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'''मुझे भरोसा है''' {{KKGlobal}}{{KKRachna|रचनाकार=तुषार धवल}}
मै प्रक्षिप्त शब्द
मृत्यु के नाचते पैरों के बीच
अंत का मुकम्मल अंत
कलम से पूछता हूँ
मै प्रक्षिप्त शब्द <br/>मृत्यु के नाचते पैरों के बीच <br/>अंत का मुकम्मल अंत <br/>कलम से पूछता हूँ <br/><br/>एक पन्ना कहीं उड़ कर <br/>पूरी दुनिया छाप लाता है <br/>और उसमे दुनिया भर की कब्रें होती हैं <br/> <br/>मुझे नहीं चाहिए ये कब्रें ये नक्शे <br/>क्योंकि अभी भी दुनिया को हाथों की ज़रूरत है <br/>पहचान को ज़बान की ज़रूरत है <br/><br/>हवास के चेहेरे पर <br/>फलसफों के मुखौटे <br/>ध्वस्त मुंडेरों पर नाचने वाले अपने ही गिद्धों से परेशान होते हैं <br/>और <br/>चुप कर दिए गए लोग <br/>बस देखते रहते हैं <br/>उनके सन्नाटों में कोई चीखता है <br/>पुकारता है <br/>उनकी व्यस्तताओं के बीच <br/><br/>मुझे भरोसा है उस बस्ती का <br/>जहाँ लोग बोलना भूल गए हैं .<br/>