भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"बचपन / प्रेमलता त्रिपाठी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमलता त्रिपाठी |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
19:41, 30 अक्टूबर 2019 के समय का अवतरण
सुंदर मोहक, बचपन तरती, नाव चली।
हँसता जीवन, खन-खन करती, नाव चली।
कितनी आशा, पलकों में है, आन बसे,
छम-छम छलकी, बूंदें रुकती, नाव चली।
पार लगाना, कागज तरिणी, आज इन्हें,
भार उठाते, काँधें झुकती, नाव चली।
राह दिखाते, पतवार वही, स्वयं बने
कुछ आगे, कुछ पीछे लगती, नाव चली।
लौट न आये, फिर से बचपन, रास लिए,
खो जाता मन, आँगन रचती, नाव चली।