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"छुपा है चाँद / रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’" के अवतरणों में अंतर

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छुपा है चाँद
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आँचल में घटा के
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हुई व्याकुल रात
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कहे किससे
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अब दिल की बात
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गिरे ओस के आँसू।
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2
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उमग पड़ी,
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खुशबू की सरिता
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पुलकित शिराएँ ।
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‘ नहीं छोड़ेंगे’-
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कहा जब उसने,
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थी महकीं  दिशाएँ ।
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3
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लहरा गया
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सुरभित आँचल,
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धारा बनकरके
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बहे धरा पे
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सुरभित वचन ;
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महका था गगन ।
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4
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बीता जीवन
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कभी घने बीहड़
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कभी किसी बस्ती में
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काँटे भी सहे
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कभी फ़ाक़े भी किए
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पर रहे मस्ती में ।
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5
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तुमसे कभी
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नेह का प्रतिदान
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माँगूँ तो टोक देना
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फ़ितरत है-
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भला करूँ सबका
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बुरा हो ,रोक देना ।
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खाए हैं घाव
 
खाए हैं घाव

06:24, 17 नवम्बर 2019 का अवतरण


6
खाए हैं घाव
चलो उनको धो लें
दु:ख के पन्ने खोलें
करता है जी
गले से लगकर
जीभर हम रो लें।
7
हज़ारों मिले
पथ में मीत हमें
चुपके से खिसके
तुम-सा न था
साथ निभाने वाला
लौटके आने वाला ।
8
राह हमारी
ये रोकेंगे सागर
फिर भी मिलना है;
तेरे दिल की
खुशबू बनने को
फूलों -सा खिलना है ।
9
पास जो बैठे
वे मीलों दूर रहे
उनसे क्या शिक़वा !
माना हमसे
कोसों दूर हो तुम
फिर भी पास लगे ।
10
ईर्ष्या का चक्र
सिर पर सवार
बही लोहित धार
कुछ न पाया
बैचैनी सदा मिली
सब कुछ गँवाया ।