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"मक्खी पड़ी मलाई में / हरि फ़ैज़ाबादी" के अवतरणों में अंतर
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मक्खी पड़ी मलाई में
हैं दोनों कठिनाई में
बहुत फ़ासला ठीक नहीं
शादी और सगाई में
दिल में थी वो सदा मगर
ग़ज़ल हुई तन्हाई में
नहीं मिलेगा क्यों मोती
जाओ तो गहराई में
कैसे उसको आग कहूँ
जो है दियासलाई में
कहें ग़ैर को क्या अपने
जब मेरी रुसवाई में
घर में ख़ुश सब कैसे हों
आख़िर एक कमाई में