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"सीख ले जो भी दाना सिखाए / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

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सीख ले जो भी दाना सिखाए।
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ये हमें कब ज़माना सिखाए?
  
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ज़िन्दगी है वही ज़िन्दगी जो ,
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प्यार में हमको मिटना सिखाए।
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बन्दगी भी वही बन्दगी है,
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जो कि बन्दे को झुकना सिखाए।
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रौशनी है ऊसूलों की बेहतर,
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राह में जो न थकना सिखाए।
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वाक़ई  है वही आदमीयत,
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हम को बनना जो अदना सिखाए।
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ताज़गी है वही ताज़गी जो,
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‘नूर’ भरपूर खिलना सिखाए।
 
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23:50, 28 दिसम्बर 2019 के समय का अवतरण

सीख ले जो भी दाना सिखाए।
ये हमें कब ज़माना सिखाए?

ज़िन्दगी है वही ज़िन्दगी जो ,
प्यार में हमको मिटना सिखाए।
 
बन्दगी भी वही बन्दगी है,
जो कि बन्दे को झुकना सिखाए।
 
रौशनी है ऊसूलों की बेहतर,
राह में जो न थकना सिखाए।
 
वाक़ई है वही आदमीयत,
हम को बनना जो अदना सिखाए।
 
ताज़गी है वही ताज़गी जो,
‘नूर’ भरपूर खिलना सिखाए।