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"हम भारतवासी सब एक हों! / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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सतरंगी नव-रश्मियों से | सतरंगी नव-रश्मियों से | ||
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प्राची के ऐसे अभिषेक हों । | प्राची के ऐसे अभिषेक हों । | ||
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आशाओं का सूरज उगे तो | आशाओं का सूरज उगे तो | ||
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निर्मल सबके बुद्धि-विवेक हों॥ | निर्मल सबके बुद्धि-विवेक हों॥ | ||
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द्वेष त्यागें, उत्थान करें मिल | द्वेष त्यागें, उत्थान करें मिल | ||
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हम भारतवासी सब एक हों ! | हम भारतवासी सब एक हों ! | ||
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पात दम्भ के सभी झर जाएँ | पात दम्भ के सभी झर जाएँ | ||
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ममता -समता सब अतिरेक हों। | ममता -समता सब अतिरेक हों। | ||
नवगीत मधुर खग-कंठ गाएँ | नवगीत मधुर खग-कंठ गाएँ | ||
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प्रेम-सद्भाव सुमन अनेक हों॥ | प्रेम-सद्भाव सुमन अनेक हों॥ | ||
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भारत माँ का यशोगान करें | भारत माँ का यशोगान करें | ||
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हम भारतवासी सब एक हों ॥ | हम भारतवासी सब एक हों ॥ | ||
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क्षुधाएँ शान्त, कंठ हों सिंचित | क्षुधाएँ शान्त, कंठ हों सिंचित | ||
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नव उन्मेष नवल अभिलेख हों। | नव उन्मेष नवल अभिलेख हों। | ||
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'कविता' मातृभूमि-सेवा ,धर्म | 'कविता' मातृभूमि-सेवा ,धर्म | ||
इसमें निरत धर्म-वर्ण प्रत्येक हों ॥ | इसमें निरत धर्म-वर्ण प्रत्येक हों ॥ | ||
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नभ-दिगंत छूने की ललक में | नभ-दिगंत छूने की ललक में | ||
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हम भारतवासी सब एक हों! | हम भारतवासी सब एक हों! | ||
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23:08, 4 जनवरी 2020 के समय का अवतरण
सतरंगी नव-रश्मियों से
प्राची के ऐसे अभिषेक हों ।
आशाओं का सूरज उगे तो
निर्मल सबके बुद्धि-विवेक हों॥
द्वेष त्यागें, उत्थान करें मिल
हम भारतवासी सब एक हों !
पात दम्भ के सभी झर जाएँ
ममता -समता सब अतिरेक हों।
नवगीत मधुर खग-कंठ गाएँ
प्रेम-सद्भाव सुमन अनेक हों॥
भारत माँ का यशोगान करें
हम भारतवासी सब एक हों ॥
क्षुधाएँ शान्त, कंठ हों सिंचित
नव उन्मेष नवल अभिलेख हों।
'कविता' मातृभूमि-सेवा ,धर्म
इसमें निरत धर्म-वर्ण प्रत्येक हों ॥
नभ-दिगंत छूने की ललक में
हम भारतवासी सब एक हों!