भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"उघर रहा गणतंत्र / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCat...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:42, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

ठिठुर रहा गण
और ध्वजा बन फहर रहा गणतंत्र

दशक दर दशक केवल लहरे
उम्मीदों की थाती
मुश्किल कहना ताली पीटें
या हम पीटें छाती

देख न पाते
कैसे जन सँग कुहर रहा गणतंत्र

खुशहाली झलके परेड में
उत्सव बहुत जरूरी
मगर राजपथ से खेतों की
अब भी उतनी दूरी

कैसे मानूँ
अच्छा सबकुछ, सँवर रहा गणतंत्र

कुचले सपनों के स्वर मद्धम
धर्मों के जयकारे
एक दिवस की राष्ट्र-भावना
सौ दिन द्रोही नारे

रेशा-रेशा
धीरे-धीरे उघर रहा गणतंत्र