भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र / राहुल शिवाय" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=राहुल शिवाय |अनुवादक= |संग्रह=आँस...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
पंक्ति 9: पंक्ति 9:
 
मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र।
 
मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र।
  
मैं पात रहित, मैं पुष्प रहित  
+
मैं पात रहित, मैं पुष्प रहित
मैं सुख से वंचित औ विस्मृत।  
+
मैं सुख से वंचित औ विस्मृत।
मैं हूँ जैसे पीड़ा का घर  -
+
मैं हूँ जैसे पीड़ा का घर।
मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र।
+
  
मैं शरण वेदना की पाकर  
+
मैं शरण वेदना की पाकर
चुपचाप हो चुका, चिल्लाकर।  
+
चुपचाप हो चुका, चिल्लाकर।
मैं टूट-टूट कर गया बिखर -
+
मैं टूट-टूट कर गया बिखर।
मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र।
+
  
ठहरा-सा यह मेरा जीवन  
+
ठहरा - सा यह मेरा जीवन
अब अश्रु-रिक्त हैं मेरे नयन।  
+
अब अश्रु-रिक्त हो चुके नयन।
लेकिन कल्पित अब भी हैं स्वर -
+
लेकिन कल्पित अब भी हैं स्वर।
मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र।
+
 
</poem>
 
</poem>

15:58, 18 फ़रवरी 2020 के समय का अवतरण

मैं हूँ पतझर का ठूँठ शज़र।

मैं पात रहित, मैं पुष्प रहित
मैं सुख से वंचित औ विस्मृत।
मैं हूँ जैसे पीड़ा का घर।

मैं शरण वेदना की पाकर
चुपचाप हो चुका, चिल्लाकर।
मैं टूट-टूट कर गया बिखर।

ठहरा - सा यह मेरा जीवन
अब अश्रु-रिक्त हो चुके नयन।
लेकिन कल्पित अब भी हैं स्वर।