भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
}}{{KKCatGeet}}
<poem>
होगा फिर से मन में विहान।।विहान।
जीवन की अंधी राहों में
जो सपने थे वे दफ़्न राख हुए,
विधि की निष्ठुर झंझाओं में
हैं नीड़ नेह के भग्न सुख सारे ही बे-साख हुए।  लेकिन उर हृद मत होना अधीर
गाते रहना तुम मधुर गान।
होगा फिर से मन में विहान।।
है प्रेम-हीन अंतर उजड़ा
एकाकीपन की छाया है,
उर हृद में उद्वेलित पीड़ा है
मन नेह-कुसुम मुरझाया है।
 
लेकिन पतझर बीतेगा कल
छेड़ेगी कोयल पुनः तान।
होगा फिर से मन में विहान।।
माना रूठा है प्रेमिल-मन
सूनी परिणय-पथ पर डोली,
जिसने था मुझसे प्यार किया
उसके बिन रिक्त हुई झोली।
 
लेकिन कल वह फिर आएगी
पायेगा उर हृद यह पुनः मान। होगा फिर से मन में विहान।।
</poem>
Mover, Protect, Reupload, Uploader
6,536
edits