भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"मुआवज़ा / दीपाली अग्रवाल" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=दीपाली अग्रवाल |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
15:29, 20 मार्च 2020 के समय का अवतरण
हर सुबह के साथ बेतरतीब जगा
फिर दोपहर और शाम खूब दौड़ाती है
कि मेरी रोज़ की तो तनख्वाह तुम मत पूछो
ये ज़िंदग़ी मुझे मुआवज़े में रात दे जाती है