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"ग़म की हर जा बरात मिलती है / हरिराज सिंह 'नूर'" के अवतरणों में अंतर

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ग़म की हर जा बरात मिलती है।
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नर्म अश्कों से रात मिलती है।
  
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ज़िन्दगी में बशर को वैसे भी,
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जीत से पहले मात मिलती है।
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भीगी ताइर की ज़ात मिलती है।
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ख़ुशनसीबों को, वो जहाँ जाएँ,
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मुतमइन कायनात मिलती है।
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‘नूर’ देखो निज़ामें-कुदरत को,
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हार कर ही नजात मिलती है।
 
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22:33, 24 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

ग़म की हर जा बरात मिलती है।
नर्म अश्कों से रात मिलती है।

ज़िन्दगी में बशर को वैसे भी,
जीत से पहले मात मिलती है।

बारिशों में शजर के गिरने से,
भीगी ताइर की ज़ात मिलती है।

ख़ुशनसीबों को, वो जहाँ जाएँ,
मुतमइन कायनात मिलती है।

‘नूर’ देखो निज़ामें-कुदरत को,
हार कर ही नजात मिलती है।