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"दयारे-गै़र में सोज़े-वतन की आँच न पूछ / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर

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जहाँ वो शोख़ है उस अंजुमन की आँच न पूछ  
 
जहाँ वो शोख़ है उस अंजुमन की आँच न पूछ  
  
क़बा में जिस्म है या शोला जेरे-परद-ए-साज़  
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क़बा में जिस्म है या शोला ज़ेरे-परद-ए-साज़  
 
बदन से लिपटे हुए पैरहन की आँच न पूछ  
 
बदन से लिपटे हुए पैरहन की आँच न पूछ  
  
 
हिजाब में भी उसे देखना क़यामत है  
 
हिजाब में भी उसे देखना क़यामत है  
नक़ाब में भी रुखे-शोला-ज़न की आँच न पूछ  
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नक़ाब में भी रुख़-ए -शोला-ज़न की आँच न पूछ  
  
 
लपक रहे हैं वो शोले कि होंट जलते हैं  
 
लपक रहे हैं वो शोले कि होंट जलते हैं  
 
न पूछ मौजे-शराबे-कुहन की आँच न पूछ  
 
न पूछ मौजे-शराबे-कुहन की आँच न पूछ  
 
 
'फ़ि‍राक' आइना-दर-आइना है हुस्ने -निगार  
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'फ़ि‍राक़' आइना-दर-आइना है हुस्ने -निगार  
 
सबाहते-चमन-अन्दर-चमन की आँच न पूछ  
 
सबाहते-चमन-अन्दर-चमन की आँच न पूछ  
  
 
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15:55, 30 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण

  

दयारे-गै़र में सोज़े-वतन की आँच न पूछ
ख़जाँ में सुब्हे-बहारे-चमन की आँच न पूछ

फ़ज़ा है दहकी हुई रक्‍़स में है शोला-ए-गुल
जहाँ वो शोख़ है उस अंजुमन की आँच न पूछ

क़बा में जिस्म है या शोला ज़ेरे-परद-ए-साज़
बदन से लिपटे हुए पैरहन की आँच न पूछ

हिजाब में भी उसे देखना क़यामत है
नक़ाब में भी रुख़-ए -शोला-ज़न की आँच न पूछ

लपक रहे हैं वो शोले कि होंट जलते हैं
न पूछ मौजे-शराबे-कुहन की आँच न पूछ

'फ़ि‍राक़' आइना-दर-आइना है हुस्ने -निगार
सबाहते-चमन-अन्दर-चमन की आँच न पूछ