भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दयारे-गै़र में सोज़े-वतन की आँच न पूछ / फ़िराक़ गोरखपुरी" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 12: | पंक्ति 12: | ||
जहाँ वो शोख़ है उस अंजुमन की आँच न पूछ | जहाँ वो शोख़ है उस अंजुमन की आँच न पूछ | ||
− | क़बा में जिस्म है या शोला | + | क़बा में जिस्म है या शोला ज़ेरे-परद-ए-साज़ |
बदन से लिपटे हुए पैरहन की आँच न पूछ | बदन से लिपटे हुए पैरहन की आँच न पूछ | ||
हिजाब में भी उसे देखना क़यामत है | हिजाब में भी उसे देखना क़यामत है | ||
− | नक़ाब में भी | + | नक़ाब में भी रुख़-ए -शोला-ज़न की आँच न पूछ |
लपक रहे हैं वो शोले कि होंट जलते हैं | लपक रहे हैं वो शोले कि होंट जलते हैं | ||
न पूछ मौजे-शराबे-कुहन की आँच न पूछ | न पूछ मौजे-शराबे-कुहन की आँच न पूछ | ||
| | ||
− | ' | + | 'फ़िराक़' आइना-दर-आइना है हुस्ने -निगार |
सबाहते-चमन-अन्दर-चमन की आँच न पूछ | सबाहते-चमन-अन्दर-चमन की आँच न पूछ | ||
</poem> | </poem> |
15:55, 30 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
दयारे-गै़र में सोज़े-वतन की आँच न पूछ
ख़जाँ में सुब्हे-बहारे-चमन की आँच न पूछ
फ़ज़ा है दहकी हुई रक़्स में है शोला-ए-गुल
जहाँ वो शोख़ है उस अंजुमन की आँच न पूछ
क़बा में जिस्म है या शोला ज़ेरे-परद-ए-साज़
बदन से लिपटे हुए पैरहन की आँच न पूछ
हिजाब में भी उसे देखना क़यामत है
नक़ाब में भी रुख़-ए -शोला-ज़न की आँच न पूछ
लपक रहे हैं वो शोले कि होंट जलते हैं
न पूछ मौजे-शराबे-कुहन की आँच न पूछ
'फ़िराक़' आइना-दर-आइना है हुस्ने -निगार
सबाहते-चमन-अन्दर-चमन की आँच न पूछ