भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"तू हर पल बाँटता फिरता ज़हर है / रूपम झा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रूपम झा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <po...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:13, 30 अप्रैल 2020 के समय का अवतरण
तू हर पल बाँटता फ़िरता ज़हर है
बता तू आदमी या ज़ानवर है
कई ग़ज की ज़ुबां तेरी है लेकिन
तेरा क़द, सच कहूँ तो हाथ भर है
हमेशा देख मत पावों के छाले
कठिन कुछ और आगे का स़फर है
अँधेरा उस जगह बसता भी कैसे
जहाँ सूरज किया करता बसर है
यहाँ खुशियों पे भी पाबंदियां हैं
न जाने किस तरह का यह शहर है
दिखाऊँ किस तरह दिल खोलकर मैं
कि तेरे पास ही मेरा ज़िगर है