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"पिताजी काहे को (बिदाई गीत) / खड़ी बोली" के अवतरणों में अंतर

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पिताजी काहे को ब्याही परदेस…<br>
 
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हम तो पिताजी थारे कमरे ईंटें, <br>
 
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काहे को ब्याही परदेस…<br>
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काहे को ब्याही परदेस…<br>

21:21, 11 सितम्बर 2008 का अवतरण

   ♦   रचनाकार: अज्ञात

बिदाई गीत -2
पिताजी काहे को ब्याही परदेस…
हम तो पिताजी थारे झाम्बे की चिड़िया
डळा मारै उड़ जाएँ ,
काहे को ब्याही परदेस…
हम तो पिताजी थारे खूँटे की गउँवाँ
जिधर हाँको हँक जाएँ ,
काहे को ब्याही परदेस…
हम तो पिताजी थारे कमरे ईंटें,
जिधर चिणों चिण जाएँ,
काहे को ब्याही परदेस…