भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कविता-1 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: अगर प्‍यार में और कुछ नहीं केवल दर्द है फिर क्‍यों है यह प्‍यार ? क...)
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKAnooditRachna
 +
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
 +
|संग्रह=रवीन्द्र संगीत‍ / रवीन्द्रनाथ ठाकुर
 +
}}
 +
[[Category:बांगला]]
 +
<poem>
 
अगर प्‍यार में और कुछ नहीं
 
अगर प्‍यार में और कुछ नहीं
 
केवल दर्द है फिर क्‍यों है यह प्‍यार ?
 
केवल दर्द है फिर क्‍यों है यह प्‍यार ?
पंक्ति 24: पंक्ति 31:
  
 
अंग्रेजी से अनुवाद-कुमार मुकुल
 
अंग्रेजी से अनुवाद-कुमार मुकुल
 +
</poem>

23:40, 11 सितम्बर 2008 का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर  » संग्रह: रवीन्द्र संगीत‍
»  कविता-1

अगर प्‍यार में और कुछ नहीं
केवल दर्द है फिर क्‍यों है यह प्‍यार ?
कैसी मूर्खता है यह
कि चूंकि हमने उसे अपना दिल दे दिया
इसलिए उसके दिल पर
दावा बनता है,हमारा भी
रक्‍त में जलती ईच्‍छाओं और आंखों में
चमकते पागलपन के साथ
मरूथलों का यह बारंबार चक्‍कर क्‍योंकर ?

दुनिया में और कोई आकर्षण नहीं उसके लिए
उसकी तरह मन का मालिक कौन है;
वसंत की मीठी हवाएं उसके लिए हैं;
फूल, पंक्षियों का कलरव सबकुछ
उसके लिए है
पर प्‍यार आता है
अपनी सर्वगासी छायाओं के साथ
पूरी दुनिया का सर्वनाश करता
जीवन और यौवन पर ग्रहण लगाता

फिर भी न जाने क्‍यों हमें
अस्तित्‍व को निगलते इस कोहरे की
तलाश रहती है ?

अंग्रेजी से अनुवाद-कुमार मुकुल