भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"कविता-3 / रवीन्द्रनाथ ठाकुर" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(नया पृष्ठ: गर्मी की रातों में जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद तुम मेरे हृदय की ...)
 
 
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
 +
{{KKGlobal}}
 +
{{KKAnooditRachna
 +
|रचनाकार=रवीन्द्रनाथ ठाकुर
 +
}}
 +
[[Category:बांगला]]
 +
<poem>
 
गर्मी की रातों में
 
गर्मी की रातों में
 
जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद
 
जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद
पंक्ति 12: पंक्ति 18:
  
 
अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल
 
अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल
 +
</poem>

11:48, 12 सितम्बर 2008 के समय का अवतरण

मुखपृष्ठ  » रचनाकारों की सूची  » रचनाकार: रवीन्द्रनाथ ठाकुर  » कविता-3

गर्मी की रातों में
जैसे रहता है पूर्णिमा का चांद
तुम मेरे हृदय की शांति में निवास करोगी
आश्‍चर्य में डूबे मुझ पर
तुम्‍हारी उदास आंखें
निगाह रखेंगी
तुम्‍हारे घूंघट की छाया
मेरे हृदय पर टिकी रहेगी
गर्मी की रातों में पूरे चांद की तरह खिलती
तुम्‍हारी सांसें , उन्‍हें सुगंधित बनातीं
मरे स्‍वप्‍नों का पीछा करेंगी।

अंग्रेजी से अनुवाद - कुमार मुकुल