"तुम्हें देखकर / कृष्ण मिश्र" के अवतरणों में अंतर
(नया पृष्ठ: तुम्हें देखकर मुह्ह्को यूँ लग रहा है, समर्पण में कोई कमी रह गयी है…) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
− | तुम्हें देखकर | + | {{KKGlobal}} |
− | + | {{KKRachna | |
+ | |रचनाकार=कृष्ण मिश्र | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह= | ||
+ | }} | ||
+ | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
+ | तुम्हें देखकर मुझको यूँ लग रहा है, | ||
समर्पण में कोई कमी रह गयी है, | समर्पण में कोई कमी रह गयी है, | ||
− | |||
− | |||
मधुर प्यारे के उन सुगन्धित क्षणों में, | मधुर प्यारे के उन सुगन्धित क्षणों में, | ||
− | |||
तुम्हें मुझसे कोई शिकायत नहीं थी, | तुम्हें मुझसे कोई शिकायत नहीं थी, | ||
− | |||
न कोई गिला था तुम्हारे हृदय में, | न कोई गिला था तुम्हारे हृदय में, | ||
− | |||
परस्पर कहीं कुछ अदावत नहीं थी, | परस्पर कहीं कुछ अदावत नहीं थी, | ||
बिना बात माथे की इन सलवटों में , | बिना बात माथे की इन सलवटों में , | ||
− | |||
उदासी की जो बेबसी दीखती है , | उदासी की जो बेबसी दीखती है , | ||
− | |||
सशंकित मेरा मन है, या बेरुख़ी है , | सशंकित मेरा मन है, या बेरुख़ी है , | ||
− | |||
या अर्पण में कोई कमी रह गयी है, | या अर्पण में कोई कमी रह गयी है, | ||
− | |||
− | |||
अगर दिल में कोई भी नाराज़गी थी, | अगर दिल में कोई भी नाराज़गी थी, | ||
− | |||
तो खुल कर कभी बात करते तो क्या था, | तो खुल कर कभी बात करते तो क्या था, | ||
− | |||
दिखावे की ख़ातिर न यूँ मुस्कुराते, | दिखावे की ख़ातिर न यूँ मुस्कुराते, | ||
− | |||
मुझे देखकर न सँवरते तो क्या था, | मुझे देखकर न सँवरते तो क्या था, | ||
मैं खोया रहा मंद मुस्कानों में ही, | मैं खोया रहा मंद मुस्कानों में ही, | ||
− | |||
न उलझन भरी भावना पढ़ सका मैं, | न उलझन भरी भावना पढ़ सका मैं, | ||
− | |||
मेरी आँख ने कुछ ग़लत पढ़ लिया था, | मेरी आँख ने कुछ ग़लत पढ़ लिया था, | ||
− | |||
या दर्पण में कोई कमी रह गयी है, | या दर्पण में कोई कमी रह गयी है, | ||
− | |||
− | |||
विगत में जो तारीकियों के सहारे, | विगत में जो तारीकियों के सहारे, | ||
− | + | उजालों की सद्कल्पना हमने की थी, | |
− | + | ||
− | + | ||
वचन कुछ लिए कुछ दिए थे परस्पर, | वचन कुछ लिए कुछ दिए थे परस्पर, | ||
− | |||
सवालों की शुभकामना हमने की थी, | सवालों की शुभकामना हमने की थी, | ||
उन्हीं वायदों में की शपथ के भरोसे, | उन्हीं वायदों में की शपथ के भरोसे, | ||
− | + | मैं ख़ुशियों की बारात ले आ गया हूँ, | |
− | मैं ख़ुशियों की | + | |
− | + | ||
भटकती हैं यादों की प्रेतात्माएं, | भटकती हैं यादों की प्रेतात्माएं, | ||
− | + | या तर्पण में कोई कमी रह गयी है. </poem> | |
− | या तर्पण में कोई कमी रह गयी है. | + |
17:35, 29 मई 2020 का अवतरण
तुम्हें देखकर मुझको यूँ लग रहा है,
समर्पण में कोई कमी रह गयी है,
मधुर प्यारे के उन सुगन्धित क्षणों में,
तुम्हें मुझसे कोई शिकायत नहीं थी,
न कोई गिला था तुम्हारे हृदय में,
परस्पर कहीं कुछ अदावत नहीं थी,
बिना बात माथे की इन सलवटों में ,
उदासी की जो बेबसी दीखती है ,
सशंकित मेरा मन है, या बेरुख़ी है ,
या अर्पण में कोई कमी रह गयी है,
अगर दिल में कोई भी नाराज़गी थी,
तो खुल कर कभी बात करते तो क्या था,
दिखावे की ख़ातिर न यूँ मुस्कुराते,
मुझे देखकर न सँवरते तो क्या था,
मैं खोया रहा मंद मुस्कानों में ही,
न उलझन भरी भावना पढ़ सका मैं,
मेरी आँख ने कुछ ग़लत पढ़ लिया था,
या दर्पण में कोई कमी रह गयी है,
विगत में जो तारीकियों के सहारे,
उजालों की सद्कल्पना हमने की थी,
वचन कुछ लिए कुछ दिए थे परस्पर,
सवालों की शुभकामना हमने की थी,
उन्हीं वायदों में की शपथ के भरोसे,
मैं ख़ुशियों की बारात ले आ गया हूँ,
भटकती हैं यादों की प्रेतात्माएं,
या तर्पण में कोई कमी रह गयी है.