"तुम्हें देखकर / कृष्ण मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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मुझे देखकर न सँवरते तो क्या था, | मुझे देखकर न सँवरते तो क्या था, | ||
मैं खोया रहा मंद मुस्कानों में ही, | मैं खोया रहा मंद मुस्कानों में ही, | ||
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न उलझन भरी भावना पढ़ सका मैं, | न उलझन भरी भावना पढ़ सका मैं, | ||
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मेरी आँख ने कुछ ग़लत पढ़ लिया था, | मेरी आँख ने कुछ ग़लत पढ़ लिया था, | ||
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या दर्पण में कोई कमी रह गयी है, | या दर्पण में कोई कमी रह गयी है, | ||
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− | या तर्पण में कोई कमी रह गयी है. | + |
18:38, 29 मई 2020 के समय का अवतरण
तुम्हें देखकर मुझको यूँ लग रहा है,
समर्पण में कोई कमी रह गयी है,
मधुर प्यार के उन सुगन्धित क्षणों में,
तुम्हें मुझसे कोई शिकायत नहीं थी,
न कोई गिला था तुम्हारे हृदय में,
परस्पर कहीं कुछ अदावत नहीं थी,
बिना बात माथे की इन सलवटों में ,
उदासी की जो बेबसी दीखती है ,
सशंकित मेरा मन है, या बेरुख़ी है ,
या अर्पण में कोई कमी रह गयी है,
अगर दिल में कोई भी नाराज़गी थी,
तो खुल कर कभी बात करते तो क्या था,
दिखावे की ख़ातिर न यूँ मुस्कुराते,
मुझे देखकर न सँवरते तो क्या था,
मैं खोया रहा मंद मुस्कानों में ही,
न उलझन भरी भावना पढ़ सका मैं,
मेरी आँख ने कुछ ग़लत पढ़ लिया था,
या दर्पण में कोई कमी रह गयी है,
विगत में जो तारीकियों के सहारे,
उजालों की सद्कल्पना हमने की थी,
वचन कुछ लिए कुछ दिए थे परस्पर,
सवालों की शुभकामना हमने की थी,
उन्हीं वायदों में की शपथ के भरोसे,
मैं ख़ुशियों की बारात ले आ गया हूँ,
भटकती हैं यादों की प्रेतात्माएं,
या तर्पण में कोई कमी रह गयी है.