भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"चिड़िया से पूछो / सुधा गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
(' {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= सुधा गुप्ता }} <poem> घोंसले की सार्थ...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
(कोई अंतर नहीं)

09:09, 11 जून 2020 का अवतरण


घोंसले की
सार्थकता
कितनी है
चिड़िया से पूछो 1

सिर्फ़ उतनी
कि जितनी देर
उसमें अण्डे रहें
अण्डों से बच्चे निकलें
बच्चे उड़ना सीखें
दाना-दुनका खाना सीखें
और
फिर एक दिन उड़ जाएँ
फुर्र … फुर्र … फुर्र …

चिड़िया
फिर कबी
मुँह मोड़कर घोंसले की ओर
नहीं देखती ।

तुम
ईंट-पत्थर के क़ैदख़ाने से
चिपके-जुड़े
ताज़िन्दगी क़ैद काटते हो !

(बूढ़ी सदी और डैने टूटा आदमी 14-12-1983)