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"मन का पाखी / प्रियंका गुप्ता" के अवतरणों में अंतर

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खुद परखो
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डाल की मजबूती
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भरोसा न तोड़ दे ।
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जब भी दर्द
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रो नहीं पाता
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ठण्डी हवा का झोंका
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यादें पुरानी
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माँ का नर्म आँचल
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वही सुनी कहानी ।
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शहरी भीड़
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सब कुछ मिलता
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बिखरा चमचम
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वो सपने सजाना ।
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आने वाले पल से,
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जो ख़त्म हो जाएगा,
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मेरी कविता ?
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बिना किसी अंत के
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कितनी अधूरी सी ।
  
 
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20:17, 13 जून 2020 के समय का अवतरण


8
ज़माना कभी
हँसने नहीं देगा
अपनी राह चुनो,
किसी की खुशी
उसे नहीं पसन्द-
बेपरवाह बनो ।
9
ग़ैरों से कैसा
शिकवा है करना
अपने ही तलाशें,
आसान रास्ता
राह में तेरे रोड़े
अटकाने के वास्ते ।
10
मन का पाखी
जाने किस डाल पे
कब जाकर बैठे,
खुद परखो
डाल की मजबूती
भरोसा न तोड़ दे ।
11
जब भी दर्द
हद से गुज़रता
रोना चाहता मन
रो नहीं पाता
ज़माने के डर से
सिर्फ़ हँसी सजाता ।
12
परदेस में
ठण्डी हवा का झोंका
धीरे से लेता आए-
यादें पुरानी
माँ का नर्म आँचल
वही सुनी कहानी ।
13
शहरी भीड़
सब कुछ मिलता
बिखरा चमचम
नहीं मिलता-
तारों की छाँव तले
वो सपने सजाना ।
14
नहीं डरती
आने वाले पल से,
जो ख़त्म हो जाएगा,
मेरी कविता ?
बिना किसी अंत के
कितनी अधूरी सी ।