भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"दाळ में काळो / इरशाद अज़ीज़" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
आशिष पुरोहित (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार= इरशाद अज़ीज़ |अनुवादक= |संग्रह= मन...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
17:17, 15 जून 2020 के समय का अवतरण
बैठ्या मटका करो
मारो सबड़का
रगत रो पसीनो
बो ईज कर सकै
जिको आपरै
बूतै खड़ो होवै
जिनगाणी री बारखड़ी
जे सीख जावै
उणनैं मूंडो ताकण री
कांई दरकार
निसांसां न्हांखतो
चालणियो
कीं नीं कर सकै
म्हैं जाणूं हूं
दाळ में काळो है
पण काळै नैं
धोळो बणावण रो
जतन तो आपां नै ईज
करणो पड़सी म्हारा भायला।