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"ग़म नहीं हो तो ज़िंदगी भी क्या / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर

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सच कहूँ तो हज़ार तकलीफ़ें
 
सच कहूँ तो हज़ार तकलीफ़ें
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14:24, 17 जून 2020 के समय का अवतरण

ग़म नहीं हो तो ज़िंदगी भी क्या
ये ग़लत है तो फिर सही भी क्या

सच कहूँ तो हज़ार तकलीफ़ें
झूठ बोलूँ तो आदमी भी क्या

बाँट लेती है मुश्किलें अपनी
हो न ऐसा तो दोस्ती भी क्या

चंद दानें उड़ान मीलों की
हम परिंदों की ज़िंदगी भी क्या

रंग वो क्या है जो उतर जाए
जो चली जाए वो ख़ुशी भी क्या