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"इस बार मिले हैं ग़म कुछ और तरह से भी / हस्तीमल 'हस्ती'" के अवतरणों में अंतर
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मंज़िल ने दिए ताने, रस्ते भी हँसे लेकिन | मंज़िल ने दिए ताने, रस्ते भी हँसे लेकिन | ||
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दामन कहीं फैला तो, महसूस हुआ यारों | दामन कहीं फैला तो, महसूस हुआ यारों |
14:39, 17 जून 2020 के समय का अवतरण
इस बार मिले हैं ग़म, कुछ और तरह से भी
आँखें है हमारी नम, कुछ और तरह से भी
शोला भी नहीं उठता, काजल भी नहीं बनता
जलता है किसी का ग़म, कुछ और तरह से भी
हर शाख़ सुलगती है, हर फूल दहकता है
गिरती है कभी शबनम, कुछ और तरह से भी
मंज़िल ने दिए ताने, रस्ते भी हँसे लेकिन
चलते रहे अक्सर हम, कुछ और तरह से भी
दामन कहीं फैला तो, महसूस हुआ यारों
क़द होता है अपना कम, कुछ और तरह से भी
उसने ही नहीं देखा, ये बात अलग वरना
इस बार सजे थे हम, कुछ और तरह से भी