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"मेरी भी आँख में गड़ता है भाई / देवेन्द्र आर्य" के अवतरणों में अंतर
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मेरी भी आँख में गड़ता है भाई | मेरी भी आँख में गड़ता है भाई | ||
मगर रिश्तों में वो पड़ता है भाई | मगर रिश्तों में वो पड़ता है भाई | ||
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जमाने की नहीं परवाह लेकिन | जमाने की नहीं परवाह लेकिन | ||
वही आरोप जब मढ़ता है भाई | वही आरोप जब मढ़ता है भाई | ||
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खरी खोटी सुना के लड़ के मुझसे | खरी खोटी सुना के लड़ के मुझसे | ||
फिर अपने आप से लड़ता है भाई | फिर अपने आप से लड़ता है भाई | ||
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जिसे मैं भूल जाना चाहता हूँ | जिसे मैं भूल जाना चाहता हूँ | ||
बराबर याद क्यों पड़ता है भाई | बराबर याद क्यों पड़ता है भाई | ||
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भले कितना ही सुन्दर हो, सफल हो | भले कितना ही सुन्दर हो, सफल हो | ||
मगर सपना भी तो सड़ता है भाई | मगर सपना भी तो सड़ता है भाई | ||
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मुझे लगता है मैं ही बढ़ रहा हूँ | मुझे लगता है मैं ही बढ़ रहा हूँ | ||
मेरे बदले में जब बढ़ता है भाई | मेरे बदले में जब बढ़ता है भाई | ||
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जिसे तुम शान से कहते हो ग़ैर | जिसे तुम शान से कहते हो ग़ैर | ||
वो अव्वल क़िस्म की जड़ता है भाई | वो अव्वल क़िस्म की जड़ता है भाई | ||
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ये मामूली सा दिखता भाई चारा | ये मामूली सा दिखता भाई चारा | ||
बहुत मंहगा कभी पड़ता है भाई | बहुत मंहगा कभी पड़ता है भाई | ||
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09:22, 18 जून 2020 का अवतरण
मेरी भी आँख में गड़ता है भाई मगर रिश्तों में वो पड़ता है भाई
जमाने की नहीं परवाह लेकिन
वही आरोप जब मढ़ता है भाई
खरी खोटी सुना के लड़ के मुझसे
फिर अपने आप से लड़ता है भाई
जिसे मैं भूल जाना चाहता हूँ
बराबर याद क्यों पड़ता है भाई
भले कितना ही सुन्दर हो, सफल हो
मगर सपना भी तो सड़ता है भाई
मुझे लगता है मैं ही बढ़ रहा हूँ
मेरे बदले में जब बढ़ता है भाई
जिसे तुम शान से कहते हो ग़ैर
वो अव्वल क़िस्म की जड़ता है भाई
ये मामूली सा दिखता भाई चारा
बहुत मंहगा कभी पड़ता है भाई
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