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"जीवन क्या है, काँच का घर है / देवेन्द्र आर्य" के अवतरणों में अंतर
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विष पी कर हम अमर हो गए | विष पी कर हम अमर हो गए |
18:14, 18 जून 2020 के समय का अवतरण
जीवन क्या है, काँच का घर है।
मौत के हाथों में पत्थर है।
पर्वत तो हो सकते हैं हम
सागर होना नदियों पर है।
मौसम, मजहब, चाहत, मंडी
घर पर किसका ख़ास असर है।
जब सपने नाख़ूनों में हों
आँखें होना बुरी ख़बर है।
विष पी कर हम अमर हो गए
मन का जादू बड़ा जबर है।
गाँव में बदली इस दुनिया की
जड़ में कोई महानगर है।
आँसू तुम कहते हो जिसको
दुनिया का पहला अक्षर है।