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"पास पास थे चुभे, गड़े / देवेन्द्र आर्य" के अवतरणों में अंतर
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पास पास थे चुभे, गड़े। | पास पास थे चुभे, गड़े। | ||
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क्या बिके कि नौकरी लगे। | क्या बिके कि नौकरी लगे। | ||
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औरतें कठिन न हों तो मर्द | औरतें कठिन न हों तो मर्द | ||
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एक बार पढ़ के छोड़ दे। | एक बार पढ़ के छोड़ दे। | ||
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18:23, 18 जून 2020 के समय का अवतरण
पास पास थे चुभे, गड़े।
दूर दूर थे, नए लगे।
शहर भी अजीब है तेरा
भीख दी तो जात पूछ के।
अपने ग़म में जल रही है वो
जाइए न हाथ सेंकिए।
रात जैसे लिख रही हो ख़त
दिन कि जैसे खो गए पते।
इश्क हमने इस तरह किया
जैसे कोई सीढ़ियाँ चढ़े।
डिगरियाँ कराहने लगीं
क्या बिके कि नौकरी लगे।
औरतें कठिन न हों तो मर्द
एक बार पढ़ के छोड़ दे।