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"उस स्पर्श से लिपटकर / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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+ | ब्रम्हाण्ड है या नीर है? | ||
+ | प्रेमी आँखों से न उबर सका | ||
+ | प्रेयसी ब्रह्माण्ड में ठहरी है। | ||
+ | प्रेम तटों -सा चुप है खड़ा | ||
+ | समय की नदी भी गहरी है। | ||
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06:08, 27 जून 2020 का अवतरण
उस स्पर्श से लिपटकर।
कसमसाकर सो जाना
उस स्पर्श से लिपटकर।
धीरे से कुछ कह जाना
वो धड़कनों में सिमटकर।
हर अनुभव अनुपम था-
हर उपमा भी निराली।
प्रेयसी की आँखों को संज्ञा
ब्रह्माण्ड की; दे डाली।
प्रेम क्या है- नहीं पता
किन्तु प्रश्न गम्भीर है।
प्रियतमा की आँखों में-
ब्रम्हाण्ड है या नीर है?
प्रेमी आँखों से न उबर सका
प्रेयसी ब्रह्माण्ड में ठहरी है।
प्रेम तटों -सा चुप है खड़ा
समय की नदी भी गहरी है।