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"दर्द के बिस्तर / कविता भट्ट" के अवतरणों में अंतर
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06:41, 30 जून 2020 के समय का अवतरण
हुआ अठन्नी दिल का भाव रे,
हम उनके अब न दुलारे हैं।
वो गैरों की धुन में हैं बावरे,
हमें दर्द के बिस्तर प्यारे हैं।
हम झोपड़ी के शहंशाह रे,
उनके तो महल-चौबारे हैं।
लाचार प्रेमिका मेरे गाँव रे,
वो प्रेमी से मॉल दुवारे हैं।
'कविता' अच्छी थी तन्हा रे,
साथी प्रेम में दिन बंजारे हैं।