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"नींद में भी नज़र से गुजरे हैं / डी. एम. मिश्र" के अवतरणों में अंतर
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+ | फूल सूखे हैं ग़मज़दा मंज़र | ||
+ | जैसे बेवा के घर से गुज़रे हैं | ||
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15:17, 8 जुलाई 2020 का अवतरण
नींद में भी नज़र से गुजरे हैं
खूबसूरत सफ़र से गुज़रे हैं
हैं जहाँ फूल और काँटे भी
एक ऐसी डगर से गुज़रे हैं
पाँव के हैं निशां अभी मिलते
कुछ मुसाफिर इधर से गुज़रे हैं
मेरे आँसू भी तू परख लेता
मोतियों के नगर से गुज़रे हैं
अपने ख़्वाबों को चूमता रहता
उनके मीठे अधर से गुज़रे हैं
देख भर ले तो बुढ़ापा भागे
उस दुआ के असर से गुज़रे हैं
कोई शै भी नज़र नहीं आती
जब से जख़्मे जिगर से गुज़रे हैं
फूल सूखे हैं ग़मज़दा मंज़र
जैसे बेवा के घर से गुज़रे हैं