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"ओ पागल संसार! / महादेवी वर्मा" के अवतरणों में अंतर
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| − | + | झुलस कहाँ हो पाया उज्जवल! | |
| − | + | कब कर पाया वह लघु तन से | |
| − | + | नव आलोक-प्रसार! | |
| − | ओ पागल संसार! | + | ओ पागल संसार! |
| − | + | अपना जीवन-दीप मृदुलतर, | |
| − | + | वर्ती कर निज स्नेह-सिक्त उर; | |
| − | + | फिर जो जल पावे हँस-हँस कर | |
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22:07, 11 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
ओ पागल संसार!
माँग न तू हे शीतल तममय!
जलने का उपहार!
करता दीपशिखा का चुम्बन,
पल में ज्वाला का उन्मीलन;
छूते ही करना होगा
जल मिटने का व्यापार!
ओ पागल संसार!
दीपक जल देता प्रकाश भर,
दीपक को छू जल जाता घर,
जलने दे एकाकी मत आ
हो जावेगा क्षार!
ओ पागल संसार!
जलना ही प्रकाश उसमें सुख
बुझना ही तम है तम में दुख;
तुझमें चिर दुख, मुझमें चिर सुख
कैसे होगा प्यार!
ओ पागल संसार!
शलभ अन्य की ज्वाला से मिल,
झुलस कहाँ हो पाया उज्जवल!
कब कर पाया वह लघु तन से
नव आलोक-प्रसार!
ओ पागल संसार!
अपना जीवन-दीप मृदुलतर,
वर्ती कर निज स्नेह-सिक्त उर;
फिर जो जल पावे हँस-हँस कर
हो आभा साकार!
ओ पागल संसार!
