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"हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर

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हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
  
 
आ उजेली रात कितनी बार भागी,
 
आ उजेली रात कितनी बार भागी,
 
 
सो उजेली रात कितनी बार जागी,
 
सो उजेली रात कितनी बार जागी,
 
 
पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई;
 
पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई;
 
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
  
 
चाँदनी तेरे बिना जलती रही है,
 
चाँदनी तेरे बिना जलती रही है,
 
 
वह सदा संसार को छलती रही है,
 
वह सदा संसार को छलती रही है,
 
 
आज ही अपनी तपन उसने मिटाई;
 
आज ही अपनी तपन उसने मिटाई;
 
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
  
 
आज तेरे हास में मैं भी नहाया,
 
आज तेरे हास में मैं भी नहाया,
 
 
आज अपना ताप मैंने भी मिटाया,
 
आज अपना ताप मैंने भी मिटाया,
 
 
मुसकराया मैं, प्रकृति जब मुसकराई;
 
मुसकराया मैं, प्रकृति जब मुसकराई;
 
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
  
 
ओ अँधेरे पाख, क्‍या मुझको डरता,
 
ओ अँधेरे पाख, क्‍या मुझको डरता,
 
 
अब प्रणय की ज्‍योति के मैं गीत गाता,
 
अब प्रणय की ज्‍योति के मैं गीत गाता,
 
 
प्राण में मेरे समाई यह जुन्‍हाई;
 
प्राण में मेरे समाई यह जुन्‍हाई;
 
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
 
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।
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21:47, 26 जुलाई 2020 के समय का अवतरण

हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।

आ उजेली रात कितनी बार भागी,
सो उजेली रात कितनी बार जागी,
पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।

चाँदनी तेरे बिना जलती रही है,
वह सदा संसार को छलती रही है,
आज ही अपनी तपन उसने मिटाई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।

आज तेरे हास में मैं भी नहाया,
आज अपना ताप मैंने भी मिटाया,
मुसकराया मैं, प्रकृति जब मुसकराई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।

ओ अँधेरे पाख, क्‍या मुझको डरता,
अब प्रणय की ज्‍योति के मैं गीत गाता,
प्राण में मेरे समाई यह जुन्‍हाई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्‍हाई।