भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
पंक्ति 2: | पंक्ति 2: | ||
{{KKRachna | {{KKRachna | ||
|रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | |रचनाकार=हरिवंशराय बच्चन | ||
+ | |अनुवादक= | ||
+ | |संग्रह=मिलन यामिनी / हरिवंशराय बच्चन | ||
}} | }} | ||
− | |||
{{KKCatKavita}} | {{KKCatKavita}} | ||
+ | <poem> | ||
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | ||
− | |||
आ उजेली रात कितनी बार भागी, | आ उजेली रात कितनी बार भागी, | ||
− | |||
सो उजेली रात कितनी बार जागी, | सो उजेली रात कितनी बार जागी, | ||
− | |||
पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई; | पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई; | ||
− | |||
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | ||
− | |||
चाँदनी तेरे बिना जलती रही है, | चाँदनी तेरे बिना जलती रही है, | ||
− | |||
वह सदा संसार को छलती रही है, | वह सदा संसार को छलती रही है, | ||
− | |||
आज ही अपनी तपन उसने मिटाई; | आज ही अपनी तपन उसने मिटाई; | ||
− | |||
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | ||
− | |||
आज तेरे हास में मैं भी नहाया, | आज तेरे हास में मैं भी नहाया, | ||
− | |||
आज अपना ताप मैंने भी मिटाया, | आज अपना ताप मैंने भी मिटाया, | ||
− | |||
मुसकराया मैं, प्रकृति जब मुसकराई; | मुसकराया मैं, प्रकृति जब मुसकराई; | ||
− | |||
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | ||
− | |||
ओ अँधेरे पाख, क्या मुझको डरता, | ओ अँधेरे पाख, क्या मुझको डरता, | ||
− | |||
अब प्रणय की ज्योति के मैं गीत गाता, | अब प्रणय की ज्योति के मैं गीत गाता, | ||
− | |||
प्राण में मेरे समाई यह जुन्हाई; | प्राण में मेरे समाई यह जुन्हाई; | ||
− | |||
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई। | ||
+ | </poem> |
21:47, 26 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।
आ उजेली रात कितनी बार भागी,
सो उजेली रात कितनी बार जागी,
पर छटा उसकी कभी ऐसी न छाई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।
चाँदनी तेरे बिना जलती रही है,
वह सदा संसार को छलती रही है,
आज ही अपनी तपन उसने मिटाई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।
आज तेरे हास में मैं भी नहाया,
आज अपना ताप मैंने भी मिटाया,
मुसकराया मैं, प्रकृति जब मुसकराई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।
ओ अँधेरे पाख, क्या मुझको डरता,
अब प्रणय की ज्योति के मैं गीत गाता,
प्राण में मेरे समाई यह जुन्हाई;
हास में तेरे नहाई यह जुन्हाई।