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"तीन रूबाइयाँ / हरिवंशराय बच्चन" के अवतरणों में अंतर
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मैं एक जगत को भूला, | मैं एक जगत को भूला, | ||
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मैं भूला एक ज़माना, | मैं भूला एक ज़माना, | ||
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कितने घटना-चक्रों में | कितने घटना-चक्रों में | ||
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भूला मैं आना-जाना, | भूला मैं आना-जाना, | ||
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पर सुख-दुख की वह सीमा | पर सुख-दुख की वह सीमा | ||
− | + | मैं भूल न पाया, साकी, | |
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जीवन के बाहर जाकर | जीवन के बाहर जाकर | ||
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जीवन मैं तेरा आना। | जीवन मैं तेरा आना। | ||
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तेरे पथ में हैं काँटें | तेरे पथ में हैं काँटें | ||
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था पहले ही से जाना, | था पहले ही से जाना, | ||
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आसान मुझे था, साक़ी, | आसान मुझे था, साक़ी, | ||
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फूलों की दुनिया पाना, | फूलों की दुनिया पाना, | ||
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मृदु परस जगत का मुझको | मृदु परस जगत का मुझको | ||
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आनंद न उतना देता, | आनंद न उतना देता, | ||
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जितना तेरे काँटों से | जितना तेरे काँटों से | ||
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पग-पग परपद बिंधवाना। | पग-पग परपद बिंधवाना। | ||
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सुख तो थोड़े से पाते, | सुख तो थोड़े से पाते, | ||
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दुख सबके ऊपर आता, | दुख सबके ऊपर आता, | ||
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सुख से वंचित बहुतेरे, | सुख से वंचित बहुतेरे, | ||
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बच कौन दुखों से पाता; | बच कौन दुखों से पाता; | ||
− | + | हर कलिका की किस्मत में | |
− | हर कलिका की | + | जग-जाहिर, व्यर्थ बताना, |
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− | जग-जाहिर, | + | |
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खिलना न लिखा हो लेकिन | खिलना न लिखा हो लेकिन | ||
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है लिखा हुआ मुरझाना! | है लिखा हुआ मुरझाना! | ||
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21:02, 27 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
मैं एक जगत को भूला,
मैं भूला एक ज़माना,
कितने घटना-चक्रों में
भूला मैं आना-जाना,
पर सुख-दुख की वह सीमा
मैं भूल न पाया, साकी,
जीवन के बाहर जाकर
जीवन मैं तेरा आना।
तेरे पथ में हैं काँटें
था पहले ही से जाना,
आसान मुझे था, साक़ी,
फूलों की दुनिया पाना,
मृदु परस जगत का मुझको
आनंद न उतना देता,
जितना तेरे काँटों से
पग-पग परपद बिंधवाना।
सुख तो थोड़े से पाते,
दुख सबके ऊपर आता,
सुख से वंचित बहुतेरे,
बच कौन दुखों से पाता;
हर कलिका की किस्मत में
जग-जाहिर, व्यर्थ बताना,
खिलना न लिखा हो लेकिन
है लिखा हुआ मुरझाना!