भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"ज़िंदगी कर गई तूफ़ाँ के हवाले मुझ को / 'दानिश'" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
Sharda suman (चर्चा | योगदान) ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार='दानिश' अलीगढ़ी }} {{KKCatGhazal}} <poem> ज़िंदगी...' के साथ नया पन्ना बनाया) |
Sharda suman (चर्चा | योगदान) |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
कोई भी मोहसिन ओ रह-बर ही नहीं है मेरा | कोई भी मोहसिन ओ रह-बर ही नहीं है मेरा | ||
यूँ तो 'दानिश' हैं बहुत चाहने वाले मुझ को | यूँ तो 'दानिश' हैं बहुत चाहने वाले मुझ को | ||
+ | </poem> |
14:15, 28 जुलाई 2020 के समय का अवतरण
ज़िंदगी कर गई तूफ़ाँ के हवाले मुझ को
ऐ अजल कशमकश-ए-ग़म से छुड़ा ले मुझ को
कुछ तो ले काम तग़ाफ़ुल से वफ़ा के पैकर
ये तेरा प्यार कहीं मार न डाले मुझ को
वाह री क़िस्मत के कहाँ मंज़िल-ए-मक़सूद मिली
जब मज़ा देने लगे पाँव के छाले मुझ को
आख़िरी वक़्त तलक साथ अँधेरों ने दिया
रास आते नहीं दुनिया के उजाले मुझ को
कोई भी मोहसिन ओ रह-बर ही नहीं है मेरा
यूँ तो 'दानिश' हैं बहुत चाहने वाले मुझ को