|रचनाकार=परवीन शाकिर
|संग्रह=खुली आँखों में सपना / परवीन शाकिर;ख़ुशबू / परवीन शाकिर
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चाँद को देख के उसका चेहरा देखा था
फ़ज़ा में कीट्स के लहजे की नरमाहट थी
मौसम अपने रंग में फ़ैज़ का मिश्रा मिसरा था
दुआ के बेआवाज़ उलूही लम्हों में
वो लम्हा भी कितना दिलकश लम्हा था