भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

"सूखना / मुदित श्रीवास्तव" के अवतरणों में अंतर

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मुदित श्रीवास्तव |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
(कोई अंतर नहीं)

15:42, 12 अगस्त 2020 के समय का अवतरण

इतना रो लेना
कि तुम्हारे फूटने से
बनाई जा सके एक नदी

एक पहाड़ के
फूट-फूट कर रोने से ही
बनीं होंगीं नदियाँ

आंसुओं के सूख जाने पर
बनें होंगें रेगिस्तान

इतना मत सूखना
कि फूटने पर
एक भी धार न निकले