भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
"वो तबस्सुम-रेज़ भी हैं और तग़ाफ़ुल केश भी / रमेश तन्हा" के अवतरणों में अंतर
Kavita Kosh से
('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रमेश तन्हा |अनुवादक= |संग्रह=तीसर...' के साथ नया पृष्ठ बनाया) |
(कोई अंतर नहीं)
|
18:27, 13 अगस्त 2020 के समय का अवतरण
वो तबस्सुम-रेज़ भी हैं और तग़ाफ़ुल केश भी
ज़िन्दगी की धूप में हैं मौत की परछाइयां
उनके तेवर देख कर अफसुर्दा-ख़ातिर है खुशी
ये तबस्सुम-रेज़ भी है और तग़ाफ़ुल केश भी
कोई बतलाए है ये चाहत की मंज़िल कौन सी
क्यों धुएं की ओट की मुश्ताक़ हैं रानाइयां
वो तबस्सुम-रेज़ भी हैं और तग़ाफ़ुल केश भी
ज़िन्दगी की धूप में हैं मौत की परछाइयां।